Shikha Arora

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लेखनी प्रतियोगिता -06-Feb-2022 फटे जूते



एक दिन देखी हमने इक दुकान, 
जूते बढ़ा रहे थे जिसकी शान |
हम भी गए दुकान के अंदर, 
बैठा था वहाँ एक बंदर |
एक जूते को वो फाड़ रहा था, 
आते जाते सबको ताड़ रहा था |
इंसान जैसा हमे वो दिया दिखाई, 
अब ये कैसी व्यथा थी भाई |
जूते को क्यों वो फाड़ रहा था, 
असमंजस में मन जूझ रहा था |
फिर जूते दिखाने की हुई शुरुआत, 
नए मजबूत जूतों की हुई बात |
पसंद आया काफी मशक्कत के बाद, 
मालिक भी बैठा था लगा कर घात |
मन में फटे जूते सोच कर खटक गई , 
फिर पैसों पर बात आकर अटक गई |
देखभाल कर के पैसे कम करवाए हमने , 
फटे हुए जूते भी निकलवाए हमने |
एक डिब्बे में पैक उनको करवाया, 
फिर वो डिब्बा अलग रखवाया |
मन में कोई संशय अब था नहीं, 
था यकीन फटा जूता साथ जाएगा नहीं |
पर हाय री हमारी किस्मत का देखो खेल, 
आगे कैसी बन गई यहाँ अपनी रेल |
फटे जूते का डिब्बा ही हाथ आ गया , 
अंधेरा आँखों के सामने छा गया |
फटे हुए जूते तेरी तो महिमा न्यारी, 
क्या करूँ अब मैं नसीब की मारी |
आँख के अंधे जब हम थे बन गए, 
पड़े वहीं जूते कतार में लग गए |
घरवालों ने भी तानें दिये थे खूब, 
फटा जूता किसी का नहीं महबूब ||

प्रतियोगिता हेतु 
शिखा अरोरा (दिल्ली) 

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4 Comments

Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI

07-Feb-2022 10:45 AM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

06-Feb-2022 06:01 PM

बहुत खूबसूरत

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Swati chourasia

06-Feb-2022 06:00 PM

Very nice

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